शांत शांत, शांत है वातावरण विचली मेरी वाणी है ज्वाला फूटती हुईं शब्दों से अंगार विस्तृत हुईं कलम से रोंद्र रूप धारण किए काला बादल है निर्मल शीतल सी बहे पवन है निज तपवन में तपे हृदय दीन दुखी की कोई नहीं सहारा निज कवि जीवन की झंकार लिए बिजली सी चमकीली रोशनी विकराल रूप धारण किए प्रकृति शंखनाद आरंभ हुए चाहुदिशा में, गूंजती हुई मंत्रोउच्चारण जागृत हुई संसार की मति फिर से आवाह्न हुई क्रांति की सुनो हे कवि तेरी वाणी में है ओज उथल पुथल मचेगी इस बारी में सावधान हो जाओ इस क्रांति से क्रांति स्वर लहरियां होगी फिर से बदलाव की क्रांति