चंद दोहे (1) धुंध बहुत छायी हुई,रिश्तों में है आज। ढूँढ़ें हल इसका कहाँ,धारे मौन समाज।। (2) सच बोलो तो मानते,बुरा आजकल मीत। ग़ज़ब अहं की धुंध यह,पानी माँगे प्रीत।। (3) बना लतीफ़े की तरह,जीवन ख़ुद अब यार। दबा समय की धुंध में,है अब सच्चा प्यार।। (4) जिनकी अँगुली थामकर,बढ़ें लोग हर रोज़। उनको ही देते दिखें,उपदेशों का डोज़।। (5) सदा आपके संग हम,बोलें कितनी बार। आप द्वेष की धुंध में,खोये हैं जब यार। ©सतीश तिवारी 'सरस' #dhundh_Ke_Dohe