Nojoto: Largest Storytelling Platform

जगी है उम्मीद, कब से सोए थी मगर, फिर गुम सी गई, वो

जगी है उम्मीद,
कब से सोए थी मगर,
फिर गुम सी गई,
वो यादों का सफर।

कहूं मैं सभी,
फसाने अगर,
सुन रहा है कौन,
खत लिखे तो पढ़,
चेहरे  मुखोटों के घर।

गुजरी थी वो शाम,
फिर से लौट आई है,
भीतर सुकून की तलाश,
 कितने सांझ से इधर।

©Vishal Pandey
  #BlueEvening