उसका वह मुस्करा कर जाना कुछ गजब सा था उसकी वह मासूमियत, जो थी दिल को भयी न जाने क्या टकराव था उसके मेरे बीच बातों की बजाए लड़ाई के किस्से हुआ करते थे उसका वो दिलो की बातों को लबों पे लाने का अंदाज़ ही कुछ गजब सा था । लबो पे वो मुस्कान की चमक का होना ही कुछ गजब सा था। उसका वो बार बार रूठ कर जाना कुछ गजब सा था दो महीने बाद वो मेसेज का आना कुछ गजब सा था कुछ इस कदर दर्द होता था दिल को दिल बेचारा तड़प उठता था उसकी एक झलक पाने को न जाने क्या ख़फ़ा हुई थी हमसे -२ बीच मजधार में छोड़ के चले गए हमे ऐसे । ✍️नरेश चंद #प्रेमप्रसंग