" मील के पत्थर" मिल चुकी खाक में मोहब्बत अपनी के, वो निशां एक दिन देखने निकले। वो घर गली न गांव कहीं कुछ न दिखे, पकड़ के हाथ जहां साथ-साथ थे चले। बदल गया है कितनी तेजी से ज़माना, हम मील के पत्थर थे वहीं खड़े मिले। भूल से आए तो होंगे'अनुज' वो भी कभी, धूल से पैरों की भला कोई कैसे मिले। ©Anuj Ray #मील का पत्थर"