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तेरी याद आती है मरयम और मैं टूट जाता हूँ, तेरी बात

तेरी याद आती है मरयम और मैं टूट जाता हूँ,
तेरी बातों की यादों के साये में ये जिन्दगी गुजर तो रही है मगर इसमें वो मोहब्बत की तारीख तारीकियाओं में दब कर रह गई हैं, तुझे इल्म नहीं है ये रक्श-ए-वहशत मुझे वजह-ए-नशात कर गया है, तेरी खामोशी ने मेरे कानों के पर्दो को चीर कर रख दिया है, तुझे कहूँगा मैं कैसे के तेरी ये जिद एक रोज मेरी जान लेकर तुझे शायद आसूदा करदे, और फिर कोई वजह बचे ही ना मेरी किस्मत में तेरे निस्बत की, तू आजाद होकर रह सकेगी मरयम, यही तो रीत है, सदियों से सच्ची मोहब्बत कब मुकम्मल होती है, आगे भी यही होगा, और अब तक भी यही हुआ है,
मेरे बाद ही शायद तेरी कहानी किसी और से परवान चढे,
मैं इस निस्बत को आज आखिरी मुकाम पर अधूरा छोड़कर तुझे अपनी कैद से रिहा कर रहा हूँ मरयम, मेरी ख्वाहिश को पूरा करना के जहाँ रहना खुश रहना मरयम...!!!

©Virat Tomar Adv
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