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कोरा कागज़ प्रतिरूप कहानी तीसरा चरण कहानी " नेह

कोरा कागज़ 
प्रतिरूप कहानी
तीसरा चरण

कहानी 
" नेहा और ब्रह्मराक्षस द्वंद" 

क्या था जो नेहा को 
महादेव ने सौंपा ?
जिसे पाने के लिए 
ब्रह्मराक्षस ललायित हो उठा।
क्या वह उसे मार डालेगा 
या कोई चन्द्रवंशी उसे बचा लेगा?

कहानी अनुशीर्षक मे पढ़े। आज चम्बा की हवा ही अलग थी।पूर्णमाशी की रात का चन्द्रमा और उज्जवलित था। पहाड़ी पगडंडियों पर चलती नेहा के पांव मे न जाने आज कौन सी थिरकन थी।चारू चंद्र की चंचल किरणे भी उसके मुख को चांदनी से दिप्त कर रही थी।
महादेव के बड़े भक्त श्याम बाबा ने अपने आश्रम मे बुलाया था।अपने प्रिय शिष्य चन्द्रकेतू के हाथ उसे संदेशा भेजा था।नेहा जानती थी यह कोई आम संदेशा नही है बहुत ही महत्वपूर्ण घटना शुरू होने का पहला चरण है।आज उसे अंधेरे मे सन्नाटे का नही आभास था बल्कि झिगुरे की आवाज़ भी उसे गीत लहरी रही थी।
अपने मे मग्न इठलाती हुई किसी अबोध बालिका से कम नही लग रही थी।उंची नीची पंगडंडियों से चढ़ते उतरते श्याम बाबा के आश्रम के करीब ही पहुंच गई थी।तभी सरसाराती हुई आवाज़ से वह ठीठक गई,उसे लगा शायद कोई जंगली जानवर होगा,लेकिन सर्वत्र उसे सिर्फ दूर तक फैला हुआ सन्नाटा ही दिखा। फिर से वही आवाज़ उसके कानो मे पड़ी मानो कोई उसके करीब से गुज़र गया हो।अजीब सी कच्चे मांस की गंध उसके इर्द गिर्द फैल गई।उसे लगा कोई मरा हुआ जानवर होगा।परन्तु आसपास ऐसा कुछ होना का उसे प्रमाण न मिला।
उसने यही सोचा कि रात के 12 बजने मे कुछ ही समय शेष है,उसे शीघ्रता करनी चाहिए।श्याम बाबा को बिल्कुल पसंद नही कि कोई विलंब से उनके यहां आगमन करे।
आश्रम पहुंचते ही उसे एहसास हो गया कि यहां कुछ तो विशेष होने वाला है।नही,कोई साज सज्जा नही थी न ही कोई चहलपहल।आश्रम के सभी निवासी गहरी नीद मे थे।
लेकिन बाबा की कुटिया से दिव्य रोशनी दिखाई दे रही थी।ऐसा लगा मानो सहस्त्र जुग्नू ने उनकी कुटिया को दिप्त कर दिया है।चन्द्रकेतू उसे कुटिया तक ले जाने आया,लेकिन उसका मौन रहना आज नेहा को खल रहा था।
बाबा की कुटिया मे प्रविष्ट करते ही उसकी नज़रे विशेष प्रकार की किताब पर पड़ी मानो सहस्त्र जूगनू ने उसे स्वर्णिम बना दिया हो।स्फटिक प्रकाश मे झिलमिल झिलमिल स्वर्णिम आभा मे लिपटी हुई थी। बाबा ने नेहा को बैठने का इशारा किया,और चन्द्रकेतू बाबा से आज्ञा लेकर बाहर कि ओर प्रस्थान कर गया।
कोरा कागज़ 
प्रतिरूप कहानी
तीसरा चरण

कहानी 
" नेहा और ब्रह्मराक्षस द्वंद" 

क्या था जो नेहा को 
महादेव ने सौंपा ?
जिसे पाने के लिए 
ब्रह्मराक्षस ललायित हो उठा।
क्या वह उसे मार डालेगा 
या कोई चन्द्रवंशी उसे बचा लेगा?

कहानी अनुशीर्षक मे पढ़े। आज चम्बा की हवा ही अलग थी।पूर्णमाशी की रात का चन्द्रमा और उज्जवलित था। पहाड़ी पगडंडियों पर चलती नेहा के पांव मे न जाने आज कौन सी थिरकन थी।चारू चंद्र की चंचल किरणे भी उसके मुख को चांदनी से दिप्त कर रही थी।
महादेव के बड़े भक्त श्याम बाबा ने अपने आश्रम मे बुलाया था।अपने प्रिय शिष्य चन्द्रकेतू के हाथ उसे संदेशा भेजा था।नेहा जानती थी यह कोई आम संदेशा नही है बहुत ही महत्वपूर्ण घटना शुरू होने का पहला चरण है।आज उसे अंधेरे मे सन्नाटे का नही आभास था बल्कि झिगुरे की आवाज़ भी उसे गीत लहरी रही थी।
अपने मे मग्न इठलाती हुई किसी अबोध बालिका से कम नही लग रही थी।उंची नीची पंगडंडियों से चढ़ते उतरते श्याम बाबा के आश्रम के करीब ही पहुंच गई थी।तभी सरसाराती हुई आवाज़ से वह ठीठक गई,उसे लगा शायद कोई जंगली जानवर होगा,लेकिन सर्वत्र उसे सिर्फ दूर तक फैला हुआ सन्नाटा ही दिखा। फिर से वही आवाज़ उसके कानो मे पड़ी मानो कोई उसके करीब से गुज़र गया हो।अजीब सी कच्चे मांस की गंध उसके इर्द गिर्द फैल गई।उसे लगा कोई मरा हुआ जानवर होगा।परन्तु आसपास ऐसा कुछ होना का उसे प्रमाण न मिला।
उसने यही सोचा कि रात के 12 बजने मे कुछ ही समय शेष है,उसे शीघ्रता करनी चाहिए।श्याम बाबा को बिल्कुल पसंद नही कि कोई विलंब से उनके यहां आगमन करे।
आश्रम पहुंचते ही उसे एहसास हो गया कि यहां कुछ तो विशेष होने वाला है।नही,कोई साज सज्जा नही थी न ही कोई चहलपहल।आश्रम के सभी निवासी गहरी नीद मे थे।
लेकिन बाबा की कुटिया से दिव्य रोशनी दिखाई दे रही थी।ऐसा लगा मानो सहस्त्र जुग्नू ने उनकी कुटिया को दिप्त कर दिया है।चन्द्रकेतू उसे कुटिया तक ले जाने आया,लेकिन उसका मौन रहना आज नेहा को खल रहा था।
बाबा की कुटिया मे प्रविष्ट करते ही उसकी नज़रे विशेष प्रकार की किताब पर पड़ी मानो सहस्त्र जूगनू ने उसे स्वर्णिम बना दिया हो।स्फटिक प्रकाश मे झिलमिल झिलमिल स्वर्णिम आभा मे लिपटी हुई थी। बाबा ने नेहा को बैठने का इशारा किया,और चन्द्रकेतू बाबा से आज्ञा लेकर बाहर कि ओर प्रस्थान कर गया।