यह थकान, यह हताशा, यह मलबा, यह पराजय कुछ भी अंतिम नहीं है/ देखते-देखते अभी उठूंगा पस्ती को रौंदता हुआ/ आएगा मेरे भीतर से मेरा अपराजित मनुष्य … नहीं कह सकता कब तक बचा सकूंगा एक पंखुड़ी, एक पत्ती या एक बूंद आंसू नहीं कह सकता कब तक खड़ा रहूंगा सह सकूंगा कितने वार और कब गिर जाऊंगा समय की छाती पर … कोई नहीं कह सकता कि फिर से नहीं उठ पड़ूंगा मैं। #कुमार अंबुज ©river_of_thoughts #कुमार_अंबुज #together