अपने आप से ही अपनी रूह की मुक्कमल मुलाकात करा सकूं,,, आए दिल में हजारों ख्यालात, कैसे उन्हें बयां कर सकूं।। होती हैं कहने को अनगिनत अल्फाजों की लड़ियां,,,किस तरह उन्हें दिल में दबा सकूं।। बातो के तरीके हो कैसे, इकरार ’ए’ जज़्बात हो कैसे,, कैसा हो शब्दो का मोड़, इस दुनिया को मैं भी अपना नजरिया बता सकूं।। दिल में कहने को समंदर सी गहराई हैं,, होठों से कह न पा रही तो आंखे भी ना जाने क्यों घबराई हैं।। क्या रह जायेंगे इजहारे ’ए’अल्फाज मेरे अनकहे,, कुछ खास नही कहने को, बस भारी हुए दिल में भरे पड़े जज़्बात हैं। जिसके पास हो सुनने को कोई कामिल यार! बस उसी की ज़िंदगी लगती मुझे आबाद हैं। ©kajal try to be express my thoughts my words... #standAlone