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फरेब भी अखबारों में छपने लगा है, सच का इश्तेहार जा

फरेब भी अखबारों में छपने लगा है,
सच का इश्तेहार जाने कब छपेगा ।
दफ़्तर भी साहब की जी हूज़ूरी करने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...जी हूज़ूरी का ये मंज़र कब तक चलेगा।
हर कल्ब यहां सख़्त होने लगा है,
अफ़रोज़ तू भला...कब तक अपने कल्ब की हिफाज़त करेगा।
ज़माना ग़रीब की ज़रूरत से बेफ़िक्र होने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...खाली जेब तू कब तक फ़िक्र करेगा।
रिश्तों में सियासत का असर दिखने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...मोहब्बत की उम्मीद कब तक लगाए रखेगा।
जायदाद की खातिर...ज़ुबानी तीर चलने लगे हैं,
अफ़रोज़ तू बता...इन तीरों के हमले कब तक सहेगा।
झूठ भी सरेआम बिकने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...तेरा लिखा सच कब तक बिकेगा। सच 
#nojoto #nojotokhabri #nojotohindi #kalakaksh #poetry #kavishala #AFROZ
फरेब भी अखबारों में छपने लगा है,
सच का इश्तेहार जाने कब छपेगा ।
दफ़्तर भी साहब की जी हूज़ूरी करने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...जी हूज़ूरी का ये मंज़र कब तक चलेगा।
हर कल्ब यहां सख़्त होने लगा है,
अफ़रोज़ तू भला...कब तक अपने कल्ब की हिफाज़त करेगा।
ज़माना ग़रीब की ज़रूरत से बेफ़िक्र होने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...खाली जेब तू कब तक फ़िक्र करेगा।
रिश्तों में सियासत का असर दिखने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...मोहब्बत की उम्मीद कब तक लगाए रखेगा।
जायदाद की खातिर...ज़ुबानी तीर चलने लगे हैं,
अफ़रोज़ तू बता...इन तीरों के हमले कब तक सहेगा।
झूठ भी सरेआम बिकने लगा है,
अफ़रोज़ तू बता...तेरा लिखा सच कब तक बिकेगा। सच 
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