मुहब्बत की बाज़ार में हर बार हमें निराशा मिली , जैसी चाहिए थी हमें वैसी ना हमें शुश्रूषा मिली ! हम तो नाता तोड़ बैठे थे इस खूबसूरत जिदंगी से , पर फिर से इस दिल को एक जीने की आशा मिली ! Mr. Chandra #positive response, शुश्रुशा= सेवा