रहन सहन से माप रहे थे बड़े लोग शक्सियत जिसकी..... कितने ही सपने,कितने ही दर्द आंचल में छुपाए बैठी.... सपनों के देर सवेर पूरा होने की मन में अास लगाए..... छोटे बड़े का भेद भुला कर.... सबको आदर स्तकार से बतलाए.... बेर भाव, जात पात से कोसों दूर वो गृहणी दिल की अमीर थी..... ©rekha charan #नारी #शक्सियत #इंसानियत #Twowords