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होंठ बंद हुए, ख़ामोशी सिसकती रही, अरमां तड़प उठे, त

होंठ बंद हुए, ख़ामोशी सिसकती रही,

अरमां तड़प उठे, तमन्ना मचलती रही ।

मोहब्बत में दौर कुछ ऐसे भी हैं गुज़रे,

मैं भी तड़पता रहा, वो भी तड़पती रही ।

सब्र थक के आखिर अब बेसब्र हो गया,

नदी की चाह में जो, बर्फ पिघलती रही ।

बयां क्या करें उस पाक मोहब्बत का,

मेरी एक भूल से,  ख़ुशी मेरी मिटती रही ।

©ANIL KUMAR
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ANIL KUMAR,)

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