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लिखना चाहती हूँ मरुथलों में हवाओं की खामोश आमद का

लिखना चाहती हूँ
मरुथलों में
हवाओं की खामोश आमद का
भेद खोलतीं 
रेत पर उभर आई लहरों को।

लिखना चाहती हूँ
नम घाटियों को
अपना दुख 
बादलों में रूपांतरित कर 
बिसराते हुए।

लिखना चाहती हूँ
पर्वतों को वेधने वाली
पहली बूँद की 
लंबी यात्रा को।

लिखना चाहती हूँ
सुबह में घुलने के लिए 
आतुर रात की 
उनींदी प्रतीक्षाओं को।

पर जानती हूँ बखूबी 
कि लिखने से पहले
इन्हें पढ़ना होगा..।।
--सुनीता डी प्रसाद💐💐 #लिखना चाहती हूँ......

लिखना चाहती हूँ
मरुथलों में
हवाओं की खामोश आमद का
भेद खोलतीं 
रेत पर उभर आई लहरों को।
लिखना चाहती हूँ
मरुथलों में
हवाओं की खामोश आमद का
भेद खोलतीं 
रेत पर उभर आई लहरों को।

लिखना चाहती हूँ
नम घाटियों को
अपना दुख 
बादलों में रूपांतरित कर 
बिसराते हुए।

लिखना चाहती हूँ
पर्वतों को वेधने वाली
पहली बूँद की 
लंबी यात्रा को।

लिखना चाहती हूँ
सुबह में घुलने के लिए 
आतुर रात की 
उनींदी प्रतीक्षाओं को।

पर जानती हूँ बखूबी 
कि लिखने से पहले
इन्हें पढ़ना होगा..।।
--सुनीता डी प्रसाद💐💐 #लिखना चाहती हूँ......

लिखना चाहती हूँ
मरुथलों में
हवाओं की खामोश आमद का
भेद खोलतीं 
रेत पर उभर आई लहरों को।