जरूरत वक़्त की समझता इंसां चालबाज़ है मसीहा गढ़ने लगता है गर मौत सामने आए बाशिंदे ख़ुदा के कुछ वाकिफ़ नही इससे भी जो ख़ुदा ही सामने हो भी तो समझ न पाए . मसीहा