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3 मैं इंसानों को गुलाम होता देख रहा हूँ, मैं व्यवस

3
मैं इंसानों को गुलाम होता देख रहा हूँ,
मैं व्यवस्थाओं को आंसू से तर-बतर
रोता देख रहा हूँ, समय को
मैं फूलो के बिस्तर पर लेटे
मेरी भावी पीढ़ी के बदन में
रंगीन कांटे चुभोता देख रहा हूँ।
कैसे कहूँ आज़ादी मना रहा हूँ,
मैं एक अदद तारीख पर,
एक अदद अनजान तारीख तक 
जिंदा रहने के लिए कसमसा रहा हूँ,
ख्वाब पूरे होने की खुशी नहीं
मैं एक सस्ता सा ख्वाब देखने
छटपटा रहा हूँ कि मैं घर पर हूँ
और घर को घर बनाये रखने
नित फैलती जाती, 
पड़ोस में शमशान को बेची
जमीन पर पछता रहा हूँ।
End 15 Aug 2021
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मैं इंसानों को गुलाम होता देख रहा हूँ,
मैं व्यवस्थाओं को आंसू से तर-बतर
रोता देख रहा हूँ, समय को
मैं फूलो के बिस्तर पर लेटे
मेरी भावी पीढ़ी के बदन में
रंगीन कांटे चुभोता देख रहा हूँ।
कैसे कहूँ आज़ादी मना रहा हूँ,
मैं एक अदद तारीख पर,
एक अदद अनजान तारीख तक 
जिंदा रहने के लिए कसमसा रहा हूँ,
ख्वाब पूरे होने की खुशी नहीं
मैं एक सस्ता सा ख्वाब देखने
छटपटा रहा हूँ कि मैं घर पर हूँ
और घर को घर बनाये रखने
नित फैलती जाती, 
पड़ोस में शमशान को बेची
जमीन पर पछता रहा हूँ।
End 15 Aug 2021

15 Aug 2021