यादों का क्या हैं ये तो हर रोज आती है
मुझे तेरी वो बेबाक हँसी आज भी सताती है
अब ये नजरे तुझे किताबों के पन्नो सा पड़ना चाहती है
मगर ये कम्बख्त बिजली चली जाती है
मेरी अंगुलियाँ तेरी जुल्फो मैं फंस जाती है
तेरे लवो से मेरे लवो की मुलाकाते बढ जाती है
ये जुबान लड़खडा जाती है
आगे की दास्तान ये आँखें भूल जाती है #जलज_कुमार#बेदर्द_स्याही#ख्वावो_वाली_मुलाकाते