किया अपनों पर विश्वास हमने, फ़िर भी हर बार हम मायूस हुए। ज़ख्म खाए ना जाने हमने कितने, हर जुल्म को हम सहते चले गए। • सादगी • `````` सच्चाई की धूप में बस जलते रहे, आबले पड़ गए फ़िर भी चलते रहे। सादगी ही हमारी सबब बन गई अपने थे जो वो हम को छलते रहे। © Sasmita Nayak