रूह की मोहब्बत की तलाश में बेशक गलतियां लाख हो जाए,,,, न मिले चाहत मुकम्मल तो जिंदगानी खाक हो जाए।।। तबाह करने की कोशिश करती हैं दुनिया,,, किसी भी मासूम दिल वाले शख्स को,,, जब वो दुनिया की ठोकर खा खा कर बेबाक हो जाए।। गम खुद कहां लिखा करता हैं,कोई अपनी ही किस्मत में,, ये सब तो नियति का खेल हैं,,, बुरे वक्त में जमाना अलग होता हैं, जैसे पत्ते से अलग शाख हो जाए।। जमाने में उठा हर विरोध फिजूल हैं, जो न टूटे आसानी से बनाए गए वो उसूल हैं,,,, जीते जी कभी न अपनाये जमाना किसी के किए बदलाव को,,, मानते हैं उसे ही मसीहा, जब उसकी देह राख हो जाए।। ©KAJAL The poetry writer रूह की मोहब्बत की तलाश में बेशक गलतियां लाख हो जाए,,,, न मिले चाहत मुकम्मल तो जिंदगानी खाक हो जाए।।। तबाह करने की कोशिश करती हैं दुनिया,,, किसी भी मासूम दिल वाले शख्स को,,, जब वो दुनिया की ठोकर खा खा कर बेबाक हो जाए।। गम खुद कहां लिखा करता हैं,कोई अपनी ही किस्मत में,, ये सब तो नियति का खेल हैं,,, बुरे वक्त में जमाना अलग होता हैं, जैसे पत्ते से अलग शाख हो जाए।।