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सदियों से चलती आ रही मिसाल आज टूट रही है कौम की लड़

सदियों से चलती आ रही मिसाल आज टूट रही है
कौम की लड़ाई में आज इंसानियत छूट रही है
कभी अपने जो ख़ास हुआ करते थे, कैसे बैगाने
हो गये, साथ उठने बैठने वाले कैसे अंजाने हो गये
बचपन में खूब गाया करते थे, की "मजहब नही 
सिखाता आपस में, भैर रखना," फिर आज क्यों
सब बेरी हो रहे है, हम अपनी सनातनी परम्परा
जाने आज क्यों, खो रहे है, सदियों से चलती आ रही
मिसाल आज टूट रही है, कौम की लडाई में इंसानियत
छूट रही है,
कभी गावं अपने दिल के करीब हुआ करता था, 
हर शख़्स अपना खास हुआ करता था,छूटता ना 
था, कोई तीज त्यौहार,मिल बैठेकर जश्न
मानते,बाँटते एक दूसरे को उपहार, 
ऐसा खुश नुमा माहौल भी कभी हुआ करता था, 
अब जाने ,कैसी नजर लगी इंसानियत को, चंद लोगोँ 
ने डूबों दी मोहब्बत को, अब दुश्मनी चारों और नजर
आती है, पड़ोस वाले घर में भी बैचैनी नज़र आती है
कौम की लडाई में हर और बैईमानी नजर आती है.
सदियों से चली आ रही मिसाल आज टूट रही है
कौम की लडाई में आज इंसानियत छूट रही है.

©पथिक
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