काश,, मुठ्ठी भर अन्न का दाना,, मुझे भी मिल जाता तो,, अपने और अपने परिवार के भूख की पीड़ा को मिटा पाता,,, हाय!! इस गरीबी का क्या करूं,, कुछ समझ नहीं आता,,, अफ़सोस!! इस दुनिया की शान बान,, , मेरे कुछ काम की नहीं,,, उफ़,!! रातों में भूख से,, नींद भी नहीं आती,,, हाय!! खाओं तो खाओ क्या,, कुछ समझ नहीं आता,,, ओह,,!! इस महंगाई में,, मेरी सारी कमाई पानी की तरह बह जाता।। ©Suraj Ratanam ##महंगाई##