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वज़ूद को पुख़्ता लिबास देने की फ़िक़्र में अंदर से कमज़

वज़ूद को पुख़्ता लिबास देने की फ़िक़्र में
अंदर से कमज़ोर ओ लिजलिजे हो गए हैं
अदब में झुकी सामने भीड़ को न देख तू
बीमार मिरे रिश्तों के सिलसिले हो गए हैं
.
धीर सिलसिले
वज़ूद को पुख़्ता लिबास देने की फ़िक़्र में
अंदर से कमज़ोर ओ लिजलिजे हो गए हैं
अदब में झुकी सामने भीड़ को न देख तू
बीमार मिरे रिश्तों के सिलसिले हो गए हैं
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धीर सिलसिले