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यह बात सत्य है कि अगर करोना का इलाज बाबा रामदेव जी

यह बात सत्य है कि अगर करोना का इलाज बाबा रामदेव जी के कोरोना दवा से ठीक होता है तो खर्च सिर्फ 500 से ₹600 आएंगे लेकिन  इसके साथ ही ग्लेनमार्ग जैसी कंपनियों का खर्च किया गया करोड़ो रुपए पानी की तरह बह जाएगा.
यह बात हम सब जानते हैं कि हमारा देश एलोपैथ का गुलाम हो चुका है इतना ही नहीं हमारे देश में आयुर्वेद के रिसर्च को लेकर हमेशा सवाल खड़ा किए गए हैं और एक महत्वपूर्ण बात एलोपैथ रिसर्च मेथाडोलॉजी और आयुर्वेद रिसर्च मेथाडोलॉजी कभी बराबर नहीं हो सकता.
दूसरी बात आयुष मंत्रालय यह कहकर पल्ला झाड़ नहीं सकती की हमें अभी तक इस दवा की कोई जानकारी नहीं है अगर ऐसा है तो आयुष मंत्रालय कर क्या रही है उनके देश में अगर कोई प्रयोगशाला कोई गलत काम करें तो क्या मंत्रालय उस चीज को कैसे संज्ञान में लेगी और उसका जिम्मेवार कौन होगा खुद मंत्रालय या फिर प्रयोगशाला.
 आयुष मंत्रालय का यह बयान अपनी जिम्मेदारियों से मुकरने जैसा है, या फिर इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश हो सकती हैं क्योंकि दुनिया भर के लोगों ने कोरोना काल में लाखों करोड़ों अरबों रुपए झोंक दिए और उन्हें वह पैसे कहीं ना कहीं इसी मार्केट से वसूलना है जोकि इस दवा के आने से संभव नहीं है. सरकार को खुद से इस दवा की पूरी प्रक्रिया जांच कर मान्यता देने की कवायद शुरू करनी चाहिए क्योंकि इससे हमारे देश को बहुत फायदा होने वाला है.
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है .
 Please must read and if possible then share..
 यह बात सत्य है कि अगर करोना का इलाज बाबा रामदेव जी के कोरोना दवा से ठीक होता है तो खर्च सिर्फ 500 से ₹600 आएंगे लेकिन  इसके साथ ही ग्लेनमार्ग जैसी कंपनियों का खर्च किया गया करोड़ो रुपए पानी की तरह बह जाएगा.
यह बात हम सब जानते हैं कि हमारा देश एलोपैथ का गुलाम हो चुका है इतना ही नहीं हमारे देश में आयुर्वेद के रिसर्च को लेकर हमेशा सवाल खड़ा किए गए हैं और एक महत्वपूर्ण बात एलोपैथ रिसर्च मेथाडोलॉजी और आयुर्वेद रिसर्च मेथाडोलॉजी कभी बराबर नहीं हो सकता.
दू
यह बात सत्य है कि अगर करोना का इलाज बाबा रामदेव जी के कोरोना दवा से ठीक होता है तो खर्च सिर्फ 500 से ₹600 आएंगे लेकिन  इसके साथ ही ग्लेनमार्ग जैसी कंपनियों का खर्च किया गया करोड़ो रुपए पानी की तरह बह जाएगा.
यह बात हम सब जानते हैं कि हमारा देश एलोपैथ का गुलाम हो चुका है इतना ही नहीं हमारे देश में आयुर्वेद के रिसर्च को लेकर हमेशा सवाल खड़ा किए गए हैं और एक महत्वपूर्ण बात एलोपैथ रिसर्च मेथाडोलॉजी और आयुर्वेद रिसर्च मेथाडोलॉजी कभी बराबर नहीं हो सकता.
दूसरी बात आयुष मंत्रालय यह कहकर पल्ला झाड़ नहीं सकती की हमें अभी तक इस दवा की कोई जानकारी नहीं है अगर ऐसा है तो आयुष मंत्रालय कर क्या रही है उनके देश में अगर कोई प्रयोगशाला कोई गलत काम करें तो क्या मंत्रालय उस चीज को कैसे संज्ञान में लेगी और उसका जिम्मेवार कौन होगा खुद मंत्रालय या फिर प्रयोगशाला.
 आयुष मंत्रालय का यह बयान अपनी जिम्मेदारियों से मुकरने जैसा है, या फिर इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश हो सकती हैं क्योंकि दुनिया भर के लोगों ने कोरोना काल में लाखों करोड़ों अरबों रुपए झोंक दिए और उन्हें वह पैसे कहीं ना कहीं इसी मार्केट से वसूलना है जोकि इस दवा के आने से संभव नहीं है. सरकार को खुद से इस दवा की पूरी प्रक्रिया जांच कर मान्यता देने की कवायद शुरू करनी चाहिए क्योंकि इससे हमारे देश को बहुत फायदा होने वाला है.
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है .
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 यह बात सत्य है कि अगर करोना का इलाज बाबा रामदेव जी के कोरोना दवा से ठीक होता है तो खर्च सिर्फ 500 से ₹600 आएंगे लेकिन  इसके साथ ही ग्लेनमार्ग जैसी कंपनियों का खर्च किया गया करोड़ो रुपए पानी की तरह बह जाएगा.
यह बात हम सब जानते हैं कि हमारा देश एलोपैथ का गुलाम हो चुका है इतना ही नहीं हमारे देश में आयुर्वेद के रिसर्च को लेकर हमेशा सवाल खड़ा किए गए हैं और एक महत्वपूर्ण बात एलोपैथ रिसर्च मेथाडोलॉजी और आयुर्वेद रिसर्च मेथाडोलॉजी कभी बराबर नहीं हो सकता.
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