पांव अपने भी जो पड़ा हूं मैं । ना जाने किस बात पर अड़ा हूं मैं । आखिरी सीन है कहानी का । रेल के सामने खड़ा हूं मैं । देख कितना बड़ा मुनाफिक हूं । देखकर तुझको हंस पड़ा हूं मैं । by# jahanjeb sahir # jahanjeb sahir poetry#