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हरे कृष्ण हरे हरे ©Vishw Shanti Sanatan Seva Trus

हरे कृष्ण हरे हरे

©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust हरिनाम कीर्तन महिमा - नाम जपत मंगल दिशा दसहुँ
By: Dr. Krishna
भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है। नाम और नामी में अभिन्नता होती है। नाम-जप करने से जापक में नामी के स्वभाव का प्रत्यारोपण होने लगता है और जापक के दुर्गुण, दोष, दुराचार मिटकर दैवी संपत्ति के गुणों का आधान (स्थापना) और नामी के लिए उत्कट प्रेम-लालसा का विकास होता है। भगवन्नाम, इष्टदेव के नाम व गुरुनाम के जप और कीर्तन से अनुपम पुण्य प्राप्त होता है। तुकारामजी कहते हैं- "नाम लेने से कण्ठ आर्द्र और शीतल होता है। इन्द्रियाँ अपना व्यापार भूल जाती हैं। यह मधुर सुंदर नाम अमृत को भी मात करता है। इसने मेरे चित्त पर अधिकार कर लिया है। प्रेमरस से प्रसन्नता और पुष्टि मिलती है। भगवन्नाम ऐसा है कि इससे क्षणमात्र में त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं। हरि-कीर्तन में प्रेम-ही-प्रेम भरा है। इससे दुष्ट बुद्धि सब नष्ट हो जाती हैं और हरि-कीर्तन में समाधि लग जाती है।"
तुलसीदासजी कहते हैं-
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।
तथा
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारू सुजन मन माहीं।।
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
हरे कृष्ण हरे हरे

©Vishw Shanti Sanatan Seva Trust हरिनाम कीर्तन महिमा - नाम जपत मंगल दिशा दसहुँ
By: Dr. Krishna
भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है। नाम और नामी में अभिन्नता होती है। नाम-जप करने से जापक में नामी के स्वभाव का प्रत्यारोपण होने लगता है और जापक के दुर्गुण, दोष, दुराचार मिटकर दैवी संपत्ति के गुणों का आधान (स्थापना) और नामी के लिए उत्कट प्रेम-लालसा का विकास होता है। भगवन्नाम, इष्टदेव के नाम व गुरुनाम के जप और कीर्तन से अनुपम पुण्य प्राप्त होता है। तुकारामजी कहते हैं- "नाम लेने से कण्ठ आर्द्र और शीतल होता है। इन्द्रियाँ अपना व्यापार भूल जाती हैं। यह मधुर सुंदर नाम अमृत को भी मात करता है। इसने मेरे चित्त पर अधिकार कर लिया है। प्रेमरस से प्रसन्नता और पुष्टि मिलती है। भगवन्नाम ऐसा है कि इससे क्षणमात्र में त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं। हरि-कीर्तन में प्रेम-ही-प्रेम भरा है। इससे दुष्ट बुद्धि सब नष्ट हो जाती हैं और हरि-कीर्तन में समाधि लग जाती है।"
तुलसीदासजी कहते हैं-
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।
तथा
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारू सुजन मन माहीं।।
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।