सुहाना सफर और एक दौर, यूं गुज़र गया मानो मुट्ठी से रेत जैसे फिसल गया। वो गुज़रे हुए ज़माने अब लौट कर नहीं आते मानो जिंदगी की हक़ीक़त से पर्दा उठ गया। काश! कि वो दिन दुबारा से जीने को मिल जाये वो बचपन,वो बिछड़े दोस्त और जो ज़माना गुज़र गया। ©Richa Dhar सुहाना सफ़र