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*वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित* *नहीं होता कि उसने

*वृक्ष कभी इस बात पर व्यथित* 
 *नहीं होता कि उसने कितने पुष्प*
*खो दिए* 
 *वह सदैव नए फूलों के सृजन में*
*व्यस्त रहता  है* 
 *जीवन में कितना कुछ खो गया* 
 *इस पीड़ा को भूल कर* 
 *क्या नया कर सकते हैं* 
 *इसी में जीवन की सार्थकता है*

©Vijay Besharm
  #saath  Manisha FAKIR SAAB Nibedita behera BIKASH SINGH neelu