लफ्ज-ए-तकदीर को हम यूँ बंया करते है. मोहब्बत के दो-चार नगमें. तशरीफ में मुख्तयार करते है.. कि इबादत मेरी कम ना थी इश्क के मुआइने में.. बंदिशो के दायरे में.. मजहबों के मुशायरे में.. मंजुर ये खुदा को भी ना थी मोहब्बत.. जो तकदीरे ही बदल डाली लकीरो के पेमाइनो मे... ©Jitendra Sharma #WINDOWQUOTE