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चला फ़क़ीर कहाँ चला तू जो चिश्ती के गावँ कब तक भटके

चला फ़क़ीर कहाँ चला तू जो चिश्ती के गावँ 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक बंजारे एकतारा लिए हाथ में झूमेगा 
कब तक तू फ़िरकी के जैसा चक्कर चक्कर घूमेगा 
आज उफ़क़ पर ले कर सूरज डूबे तेरे पावँ 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक बीतेगी बंजारे, आँखों में कजरी रात 
औऱ लबों पर जम जाएगी लहरों सी वो बात 
सहील के सदके में कब तक और बहेगी नाव 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

यार ख़ुदा सब रंग रेत के धूप पड़ी उड़ जाते हैं 
और उंगलियों के सहील में बचे हुए पल आते हैं 
फाँक रिंद की कड़वी गोली, खेल जरा ये दावँ
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक सुलगेगा बंजारे और चिलम को खींचेगा
तकलीदों के आँगन कब तक उम्मीदों से सींचेगा 
कब लौटे हैं,क्यों लौटेंगे छोड़ चले जो पावँ 
चला फ़क़ीर कहाँ चला तू जो चिश्ती के गावँ 

उदासियाँ २ @ चिश्ती के गावँ

©Mo k sh K an #mikyupikyu 
#mokshkan 
#उदासियाँ_the_journey 
#fatehpursikri 
#tassavuf
चला फ़क़ीर कहाँ चला तू जो चिश्ती के गावँ 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक बंजारे एकतारा लिए हाथ में झूमेगा 
कब तक तू फ़िरकी के जैसा चक्कर चक्कर घूमेगा 
आज उफ़क़ पर ले कर सूरज डूबे तेरे पावँ 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक बीतेगी बंजारे, आँखों में कजरी रात 
औऱ लबों पर जम जाएगी लहरों सी वो बात 
सहील के सदके में कब तक और बहेगी नाव 
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

यार ख़ुदा सब रंग रेत के धूप पड़ी उड़ जाते हैं 
और उंगलियों के सहील में बचे हुए पल आते हैं 
फाँक रिंद की कड़वी गोली, खेल जरा ये दावँ
कब तक भटकेगा बंजारे ढूँढ़ रूह की छावं 

कब तक सुलगेगा बंजारे और चिलम को खींचेगा
तकलीदों के आँगन कब तक उम्मीदों से सींचेगा 
कब लौटे हैं,क्यों लौटेंगे छोड़ चले जो पावँ 
चला फ़क़ीर कहाँ चला तू जो चिश्ती के गावँ 

उदासियाँ २ @ चिश्ती के गावँ

©Mo k sh K an #mikyupikyu 
#mokshkan 
#उदासियाँ_the_journey 
#fatehpursikri 
#tassavuf
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