फिसलती है यूं जिंदगी हाथों से जैसे रेत कोई ज्यों ही मुट्ठी खोल देती है एक झटके में मौत से तोल देती है समझने की कोशिश करता हूं जब भी इसे कुछ न कुछ मोल लेती है मौत के दरवाजे पर खड़ा होकर जो एक दिन की मोहलत मांगू जीने की तो एक क्षण में फिजूल गवाए हर क्षण का चिट्ठा खोल देती है आखिर क्यों ये जिंदगी जीवन के अंतिम छोर पर ही अपना मोल देती है ©kanishka #time #Time