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फिसलती है यूं जिंदगी हाथों से जैसे रेत कोई ज्यों ह

फिसलती है यूं जिंदगी
हाथों से जैसे रेत कोई
ज्यों ही मुट्ठी खोल देती है 
एक झटके में मौत से तोल देती है
समझने की कोशिश
 करता हूं जब भी इसे 
कुछ न कुछ मोल लेती है
मौत के दरवाजे पर खड़ा होकर 
जो एक दिन की मोहलत मांगू जीने की 
तो एक क्षण में 
फिजूल गवाए हर क्षण का चिट्ठा खोल देती है 
आखिर क्यों ये जिंदगी
जीवन के अंतिम छोर पर ही
 अपना मोल देती है

©kanishka #time 

#Time
फिसलती है यूं जिंदगी
हाथों से जैसे रेत कोई
ज्यों ही मुट्ठी खोल देती है 
एक झटके में मौत से तोल देती है
समझने की कोशिश
 करता हूं जब भी इसे 
कुछ न कुछ मोल लेती है
मौत के दरवाजे पर खड़ा होकर 
जो एक दिन की मोहलत मांगू जीने की 
तो एक क्षण में 
फिजूल गवाए हर क्षण का चिट्ठा खोल देती है 
आखिर क्यों ये जिंदगी
जीवन के अंतिम छोर पर ही
 अपना मोल देती है

©kanishka #time 

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