पिता! तेरी कोशिश रही कि मेहनत से ही सही तैयार हो माक़ूल मुस्तक़बिल का ढाँचा और जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ वो है तेरे ही किरदार की धूप-छाँव में पालते-बढ़ते हैं उम्मीदों के पौधे जिसे सींचा जाता है ग़ैरत के पानी से और जिसमें लगते हैं ख़ुद्दारी के बेल-बूटे # पिता!तेरे किरदार की धूप-छाँव में बढ़ते हैं उम्मीदों के पौधे