कण्ठ में ज़हर कैसे छुपाया तूने नीलकण्ठ, यहाँ मनुज नित गरल उगल रहा नफरत का, सुन अमृतवाणी बहलाता मन हो उत्कंठ, भोलेनाथ दिखा दे इसे ज़रा पग सरलता का।। 👉🏻 प्रतियोगिता- 614 विषय 👉🏻 🌹"ज़हर"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I 🌟कृपया font size छोटा रखें जिससे wallpaper ख़राब नहीं लगे और Font color का भी अवश्य ध्यान रखें ताकि आपकी रचना visible हो। 🌟 पहले सावधानी पूर्वक "CAPTION" पढ़ें और दिए हुए शब्द को ध्यान में रखते हुए अपने ख़ूबसूरत शब्दों एवं भावों के साथ अपने एहसास कहें।