"वक्त" किसी का गुलाम नहीं "गालिब" चलना खुद पड़ता है, "राहें" नहीं चलती.. पाँव खुद -व-खुद चलती मैखाने तलक मैखाने खुद व खुद नहीं आती घर तलक सभी दोष देते हैं "शराब" पीने वाले को शराब को कभी "बदनामी" नहीं मिलती "वक्त" किसी का गुलाम नहीं "गालिब" चलना खुद पड़ता है, "राहें" नहीं चलती.. यह समाज का 'आईना' है देखता सब है फिर भी इसे "छोड़ता" कहाँ कौन कब है सरकारें भी "माला-माल" होती है इनसे कई "ज़िन्दगियाँ" "बर्वाद" होती है इनसे लौट आ छोड़ दे, हाथें लगाना इसे अपने तेरे भी कई "ख़्वाब" हैं "सपने" हैं अपने "वक्त" किसी का गुलाम नहीं "गालिब" चलना खुद पड़ता है, "राहें" नहीं चलती.. ©अनुषी का पिटारा.. #liquor #शराब #शराबी #मैखाना