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बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो – हिंदी कविता

बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो – हिंदी कविता

बेवजह जज़्बातों को जगाते ही क्यूँ हो,
गर यकीं नहीं तो दिल लगाते ही क्यूँ हो!

जब आकर चले जाना फितरत में है तेरी,
तो बेवजह जिन्दगी में आते ही क्यूँ हो!

अपना नहीं सकते जिसे उम्रभर के लिए,
उसे जमाने से अपना बताते ही क्यूँ हो!

जिन रिश्तों को समेटना आता नहीं तुम्हें,
उन रिश्तों को फिर आजमाते ही क्यूँ हो!

जब वजह दे नहीं सकते पलभर मुस्कुराने की,
तो खामखां इस तरह से रुलाते ही क्यूँ हो!!

©Motivational GalaxyA1
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