वो भी कितने शातिर थे जो, दो गज जमीन के देकर बटवारे के नाम, सारी की सारी जमीर ही ले गये। जमीर(माँ-बाप) हम चुप रहे मर्यादा रिश्तो की पाल, वर्ना हम भी कर लेते उनके बुढ़ापे में, बचपन सी सम्हाल। कविता जयेश पनोत 3oct2020 10.30pm ©Kavita jayesh Panot #दिल_की_डायरी_से_