शाम यथार्थ खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियारा हो कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।। दरख्तों की छांव में यहां चिड़िया बैठने से डरती है। बोझिल सी करती है हवा यहां, प्रतिपल कुंठा भरती है।। हर चमकता चेहरा यहां बेगाना सा लगता है। फीकी मुस्कुराहट से मिलना बड़ा फसाना लगता है।। हर कोई दिखता मूक बधिर, कौन इशारा हो।। कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।। मनगढ जुमले, मनगढ किस्से , है सत्ता की सौगात यहां सबकी अपनी मोहरें हैं, है सबकी अपनी बिसात यहां। दुधमुही बच्ची की आबरू भी पल में छिन्न जाती है नारी की यह कटु वेदना, खुद में खिन्न लाती है। खुदमें घुटती मानवता यहां, कौन सहारा हो।। कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।। #mydiary #mystory #mystyle #nojotoहिंदी #writeindia