मरने अगर न पाई तो ज़िंदा भी कब रही तन्हा कटी वो उम्र जो थी तेरे साथ की #परवीन शाकिर इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की हम ने तो बस हवा के तअ'ल्लुक़ से बात की