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हजारों बोझ में एक बोझ सांसों का, ढो रहा हूं बोझ मे

हजारों बोझ में एक बोझ सांसों का,
ढो रहा हूं बोझ में बिखरते एहसासों का,

टूट टूट गिर रहीं लाशें मेरे हौसलों की,
बोझ है बढ़ता चला, बोझिल इन सांसों का,

खोल रहे ताले, वर्षों बंद राज़ के,
मूक दर्शी मैं अकेला, इन सभी तमाशों का, ❤ प्रतियोगिता- 581

 ❤आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा विषय है 

 👉🏻🌹"बोझिल साँसे"🌹 
🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य  है I कृप्या 
केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I
हजारों बोझ में एक बोझ सांसों का,
ढो रहा हूं बोझ में बिखरते एहसासों का,

टूट टूट गिर रहीं लाशें मेरे हौसलों की,
बोझ है बढ़ता चला, बोझिल इन सांसों का,

खोल रहे ताले, वर्षों बंद राज़ के,
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