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दीन की इच्छा नहीं होती,निराशा अपनी कुंठा लिए। एक

दीन की इच्छा नहीं होती,निराशा अपनी कुंठा लिए।

एक दीन सो के उठा जानता है,सवेरा हुआ नहीं
जीविका दशा जानता है,जीवन नहीं
दीन स्वरूप रोटी पर आश्रित है,कर्म तो आयु है
नैतिक अलंकार का अस्तित्व कहाँ,जब दो पैसे भर की सादगी हो
दीन की अर्धांगिनी नहीं होती,बस एक जोड़ा हाँथ
दीन उत्सव नहीं मानता,धार्मिक कृत्य उठाता है
दीन दान नहीं देता,सौभाग्य लेता है
कलह में नहीं पड़ता,कलह में जीता है
उसे ठेस नहीं पहुंचती,दम घुटता है
दीन लोभ नहीं करता,लोभी पहचानता है
अभ्यस्त है दीन शारीरिक रूप से,मस्तिष्क की सुध बुध,मात्र रक्षा हेतु
दीन को दुःख न मिले तो,उसका दिन आ जाता है
एक दीन की निराशा तब दूर होती है 
जब वो 'निराला' के भिक्षुक को पढ़ता है।
इस्लाम के फकीर से मिलता है।
बौद्ध भिक्खु की महिमा में पड़ जाता है। उत्थान तंत्र की कमी।समाज में पैसों की निराशा ने सब बेच दिया।कला,संस्कृति का स्रोत तकनीक आश्रित हो गया....


#विप्रणु #yqdidi #yqbaba #life #musings #educationminister #jantajnardn #कल्याणकारीसरकार
दीन की इच्छा नहीं होती,निराशा अपनी कुंठा लिए।

एक दीन सो के उठा जानता है,सवेरा हुआ नहीं
जीविका दशा जानता है,जीवन नहीं
दीन स्वरूप रोटी पर आश्रित है,कर्म तो आयु है
नैतिक अलंकार का अस्तित्व कहाँ,जब दो पैसे भर की सादगी हो
दीन की अर्धांगिनी नहीं होती,बस एक जोड़ा हाँथ
दीन उत्सव नहीं मानता,धार्मिक कृत्य उठाता है
दीन दान नहीं देता,सौभाग्य लेता है
कलह में नहीं पड़ता,कलह में जीता है
उसे ठेस नहीं पहुंचती,दम घुटता है
दीन लोभ नहीं करता,लोभी पहचानता है
अभ्यस्त है दीन शारीरिक रूप से,मस्तिष्क की सुध बुध,मात्र रक्षा हेतु
दीन को दुःख न मिले तो,उसका दिन आ जाता है
एक दीन की निराशा तब दूर होती है 
जब वो 'निराला' के भिक्षुक को पढ़ता है।
इस्लाम के फकीर से मिलता है।
बौद्ध भिक्खु की महिमा में पड़ जाता है। उत्थान तंत्र की कमी।समाज में पैसों की निराशा ने सब बेच दिया।कला,संस्कृति का स्रोत तकनीक आश्रित हो गया....


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