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ग़ज़ल इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग, ऊंचाइयों के

ग़ज़ल
इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग,
ऊंचाइयों के ख़्वाब दिखाती हुई पतंग।

कुछ उंगलियों की थाप पे करते हुए ये रक़्स,
नाज़ ओ अदा से बाम पे छाती हुई पतंग,

इसके तुफ़ैल लड़ते हैं नज़रों के पेच भी,
यानी के दर्स ए इश्क़ पढ़ाती हुई पतंग।

नुक़सान क्या हैं लड़ने झगड़ने के ज़ीस्त में,
कट कर के दूर डोर से जाती हुई पतंग।

मुश्किल को कैसे चीर के बढ़ना है दोस्तों,
उन हौसलो का राग सुनाती हुई पतंग।

करते हैं रश्क हुस्न पे जिसके तमाम शख़्स,
देखी वो हूर ज़ात उड़ाती हुई पतंग।

मासूम पेट के लिए इक माँ यहाँ शिहाब,
बच्चों को पालती है बनाती हुई पतंग।

©️✍️एजाज़ उल हक़ "शिहाब"

तमाम अहले वतन भाइयों को मकर संक्रांति की ढेरों मुबारकबाद।।। ग़ज़ल

इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग,
ऊंचाइयों के ख़्वाब दिखाती हुई पतंग।

कुछ उंगलियों की थाप पे करते हुए ये रक़्स,
नाज़ ओ अदा से बाम पे छाती हुई पतंग,
ग़ज़ल
इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग,
ऊंचाइयों के ख़्वाब दिखाती हुई पतंग।

कुछ उंगलियों की थाप पे करते हुए ये रक़्स,
नाज़ ओ अदा से बाम पे छाती हुई पतंग,

इसके तुफ़ैल लड़ते हैं नज़रों के पेच भी,
यानी के दर्स ए इश्क़ पढ़ाती हुई पतंग।

नुक़सान क्या हैं लड़ने झगड़ने के ज़ीस्त में,
कट कर के दूर डोर से जाती हुई पतंग।

मुश्किल को कैसे चीर के बढ़ना है दोस्तों,
उन हौसलो का राग सुनाती हुई पतंग।

करते हैं रश्क हुस्न पे जिसके तमाम शख़्स,
देखी वो हूर ज़ात उड़ाती हुई पतंग।

मासूम पेट के लिए इक माँ यहाँ शिहाब,
बच्चों को पालती है बनाती हुई पतंग।

©️✍️एजाज़ उल हक़ "शिहाब"

तमाम अहले वतन भाइयों को मकर संक्रांति की ढेरों मुबारकबाद।।। ग़ज़ल

इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग,
ऊंचाइयों के ख़्वाब दिखाती हुई पतंग।

कुछ उंगलियों की थाप पे करते हुए ये रक़्स,
नाज़ ओ अदा से बाम पे छाती हुई पतंग,

ग़ज़ल इठलाती, झूमती हुई, गाती हुई पतंग, ऊंचाइयों के ख़्वाब दिखाती हुई पतंग। कुछ उंगलियों की थाप पे करते हुए ये रक़्स, नाज़ ओ अदा से बाम पे छाती हुई पतंग, #Shayari #rekhta #urdushayri #kitefestival #Ajazshihab