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कविता कोश बाल शिशू कुछ गूरू की आड में छाय कुछ दोस

कविता कोश बाल शिशू
कुछ गूरू की आड में छाय
कुछ  दोस्तों की बाड में छाय
वो खिले बस फूलों की तरह
वो चमके बस जुगनू की तरह
कभी मुस्कुराते गुरुकुल के बाग में पाए
 वो बचपन का चोला पहनकर
हिंदुस्तान में छाए
सात रंगों के इंद्रधनुष की तरह
हर किसी के मन को भाए
हर खेल में मिली उनको जीत
जो हार कर भी मुस्कुराए
हर मित्रता की कसौटी पर
जो पूरा खरा उतर जाए
मिले अगर कृष्ण मित्र हर जन्म में
सुदामा का चरित्र फिर संवर जाए
गुरुकुल के हवन कुंड में
फिर द्रोणा प्र कट हो जाए बाल शिशु
कविता कोश बाल शिशू
कुछ गूरू की आड में छाय
कुछ  दोस्तों की बाड में छाय
वो खिले बस फूलों की तरह
वो चमके बस जुगनू की तरह
कभी मुस्कुराते गुरुकुल के बाग में पाए
 वो बचपन का चोला पहनकर
हिंदुस्तान में छाए
सात रंगों के इंद्रधनुष की तरह
हर किसी के मन को भाए
हर खेल में मिली उनको जीत
जो हार कर भी मुस्कुराए
हर मित्रता की कसौटी पर
जो पूरा खरा उतर जाए
मिले अगर कृष्ण मित्र हर जन्म में
सुदामा का चरित्र फिर संवर जाए
गुरुकुल के हवन कुंड में
फिर द्रोणा प्र कट हो जाए बाल शिशु

बाल शिशु