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उसकी आँखों की गहराई देखूं जरा गहराई समुन्दर की तो

उसकी आँखों की गहराई देखूं जरा 
गहराई समुन्दर की तो नहीं! 
पलकें जो अभी अभी छायी थी,
पंखुड़ी गुलाब की तो नहीं! 
मदमाते माहौल में जो नशा है
        उसके  हुस्न की मदिरा तो नहीं
   मुस्कान जो होंठ पर हैं 
         कहीं वो हूर की परी  तो नहीं! #drgkpoetry
उसकी आँखों की गहराई देखूं जरा 
गहराई समुन्दर की तो नहीं! 
पलकें जो अभी अभी छायी थी,
पंखुड़ी गुलाब की तो नहीं! 
मदमाते माहौल में जो नशा है
        उसके  हुस्न की मदिरा तो नहीं
   मुस्कान जो होंठ पर हैं 
         कहीं वो हूर की परी  तो नहीं! #drgkpoetry