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जीवन में खालीपन सा है,सोचो तो दो ही बातों का। एक च

जीवन में खालीपन सा है,सोचो तो दो ही बातों का।
एक चाय सुहानी सन्ध्या की, स्पर्श तुम्हारे हाथों का।।
कार्यालय से आते आते, मन निढ़ाल सा हो जाता है।
मस्तक पर तुम्हारा प्रिय चुम्बन,स्फूर्ति नयी ले आता है।।
विश्वास अटल ये होता है, मुखमण्डल धोकर आता हूँ।
कुछ पल सोफे पर बैठूं तो, सानिध्य तुम्हारा पाता हूँ।।
समस्त पर हाथ फिराती हो, सब थकान छू हो जाती है।
ठहरो चाय लेकर आती हूँ, यह प्रक्रिया सदा सदा की है।।
यह भी अटूट सा नाता है, सुन्दर सा लगता है जीवन।
मन को कितना हर्षाते हैं, वह सन्ध्या "चाय और तुम" हम।।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh #चाय और तुम#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#काव्य संकलन #समाज एवं संस्कृति #teaandyou#2nd अक्तूबर
जीवन में खालीपन सा है,सोचो तो दो ही बातों का।
एक चाय सुहानी सन्ध्या की, स्पर्श तुम्हारे हाथों का।।
कार्यालय से आते आते, मन निढ़ाल सा हो जाता है।
मस्तक पर तुम्हारा प्रिय चुम्बन,स्फूर्ति नयी ले आता है।।
विश्वास अटल ये होता है, मुखमण्डल धोकर आता हूँ।
कुछ पल सोफे पर बैठूं तो, सानिध्य तुम्हारा पाता हूँ।।
समस्त पर हाथ फिराती हो, सब थकान छू हो जाती है।
ठहरो चाय लेकर आती हूँ, यह प्रक्रिया सदा सदा की है।।
यह भी अटूट सा नाता है, सुन्दर सा लगता है जीवन।
मन को कितना हर्षाते हैं, वह सन्ध्या "चाय और तुम" हम।।
धन्यवाद।

©bhishma pratap singh #चाय और तुम#हिन्दी कविता#भीष्म प्रताप सिंह#काव्य संकलन #समाज एवं संस्कृति #teaandyou#2nd अक्तूबर