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हो कर खड़ी दरीचों से मैं बीता ज़माना बुलाती हूँ, मेर

हो कर खड़ी दरीचों से मैं बीता ज़माना बुलाती हूँ,
मेरा नाम अपनी ज़ुबाँ से आकर फ़िर से पुकार दे तू।— % & ♥️ आइए लिखते हैं दो मिसरे प्यार के :)

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

♥️ केवल 2 पंक्ति लिखनी हैं और वो भी प्यार की।

♥️ कृपया स्वरचित एवं मौलिक पंक्तियाँ ही लिखें।
हो कर खड़ी दरीचों से मैं बीता ज़माना बुलाती हूँ,
मेरा नाम अपनी ज़ुबाँ से आकर फ़िर से पुकार दे तू।— % & ♥️ आइए लिखते हैं दो मिसरे प्यार के :)

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nazarbiswas3269

Nazar Biswas

New Creator