तपती हुई रेत पर किसी के निशां देख रहा हूँ। परेशां हूँ मै, उसे भी परेशां देख रहा हूँ।। अनजानी मंजिल को पाने की होड़ में सब लगे हुए है। कुछ अच्छा कमाने - खाने की, दौड़ में सब लगे हुए है।। सगे रिश्ते ठुकराने वाला, यह मतलबी जहां देख रहा हूँ। परेशां हूँ मै, उसे भी परेशां देख रहा हूँ।। मुकेश बिर्ला (गुर्जर श्री) #परेशां हूँ मैं, उसे भी परेशां देख रहा हूँ#