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मिटाया तुमने मुझको अपनी ज़िंदगी से इस क़दर, मौत ने म

मिटाया तुमने मुझको अपनी ज़िंदगी से इस क़दर,
मौत ने मिटाया हो निशान गुनाहों का जिस क़दर।

यूँ छू कर गुज़रा था मोहब्बत का कारवाँ,
मानो पतझड़ ने किया था ख़्वाबों को रवाँ।

सूखे शजर पर बैठी रहीं उम्मीद की टहनियाँ,
जड़ो की कमज़ोरी सुना बैठी ज़ाहिर सी दास्ताँ।

हवाओं ने रुख मोड़ा फिर सर्दियों की ओर,
ठंड में ठिठुरती रही इश्क़ की वो डोर।

जला कर जज़्बातों को नफ़रत की चिंगारी में,
अस्तियों को विसर्जित कर दिया आँखों के द्वारे।

मुल्ज़िम को रिहा कर, छोड़ दिया मुक़द्दर के आगे,
इंसाफ़ करेगा ख़ुदा एक रोज़, नहीं वो ख़ुदा से आगे। #इंसाफ़ #ख़ुदा_की_अदालत #कर्म #yqdidi #yqbaba #drgpoems
मिटाया तुमने मुझको अपनी ज़िंदगी से इस क़दर,
मौत ने मिटाया हो निशान गुनाहों का जिस क़दर।

यूँ छू कर गुज़रा था मोहब्बत का कारवाँ,
मानो पतझड़ ने किया था ख़्वाबों को रवाँ।

सूखे शजर पर बैठी रहीं उम्मीद की टहनियाँ,
जड़ो की कमज़ोरी सुना बैठी ज़ाहिर सी दास्ताँ।

हवाओं ने रुख मोड़ा फिर सर्दियों की ओर,
ठंड में ठिठुरती रही इश्क़ की वो डोर।

जला कर जज़्बातों को नफ़रत की चिंगारी में,
अस्तियों को विसर्जित कर दिया आँखों के द्वारे।

मुल्ज़िम को रिहा कर, छोड़ दिया मुक़द्दर के आगे,
इंसाफ़ करेगा ख़ुदा एक रोज़, नहीं वो ख़ुदा से आगे। #इंसाफ़ #ख़ुदा_की_अदालत #कर्म #yqdidi #yqbaba #drgpoems
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