(सब बिकता है) इस ज़माने में क्या कुछ नही बिखता है दर्द बिकता है ग़म बिकता है और तो और यहाँ तो जिस्म बिकता है। भूख बिकती है भूखा पेट बिकता है गरीब तो गरीब यहाँ तो अमीर सेठ बिकता है। घर बिकता है मकान बिकता है और लोगों का अहसास बिकता है क़ीमत अगर अच्छी हो तो ईमान बिकता है। काम बिकता है यहाँ आराम बिकता है ये नया शहर है यहाँ पर गुनाह भी खुलेआम बिकता है। तुम यूँ न हैरान हो मेरे दोस्त सुनकर ये संसार है यहाँ पर इंसान तो इंसान ख़ुद भगवान बिकता है। #यहाँ #सब #बिकता #है