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एक बीज है दबा हुआ.. आशाओं से सना हुआ.. भीतर घोर अ

एक बीज है दबा हुआ.. 
आशाओं से सना हुआ..
भीतर घोर अंधकार है, 
जो लड़ सका उसी का विस्तार है.. 

है तहों में जो गड़ा हुआ..
समय चक्र में अडिग अड़ा हुआ..
भूगर्भ में ले रहा जो स्वास. 
स्वास पर्याय बनने का विश्वास..

बीज आज जो दबा हुआ... 
मौसम के थपेड़ों से जुझा हुआ..
बस कोंपले आने की चाह है, 
फिर जीवन अनंत हैं,अथाह है..

एक बीज है दबा हुआ.. 
संभावनाओं से लिपटा हुआ.. 
वृक्ष बनना ही संकल्प है.. 
अब कोई और न विकल्प है..

©Chanchal's poetry
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