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आदत सा कहीं हो न जाए मेरा हर काम तुम पर न पड़ जाए

आदत सा कहीं हो न जाए 
मेरा हर काम तुम पर न पड़ जाए 
मैं अपने ही लक्ष्य से भटक न जाऊं 
मेरा हर लक्ष्य तुम पर न आ जाए  
कहीं यह साथ  
वक्त के छाव में धूमील न हो जाए 
मै तुम्हे पुकारते रहूं 
कहीं  मेरी  यह पुकार बेघर न हो जाए 
कहीं मै  इस तारो भरी महफ़िल में 
अकेली चांदनी सी न रह जाऊं

©कंचन
  # question ❓
kanchanrajak1414

कंचन

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# question ❓ #ज़िन्दगी

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