रोटी बिहार का रोटी नहीं रोजगार चाहिए, पैसा नहीं व्यापार चाहिए हम सब हैं हुनर वाले , मौका हमें एक बार चाहिए ! अरे अब तो संभालिए साहेब 70 साल की कहानी कभी कोलकाता ,तो कभी दिल्ली, तो कभी गुजरात में भटक रहा है यह जिंदगानी! निकल पड़ते हैं रुपैया को खोजने ! एक बोतल पानी और एगो बैग के साथ ,25 बोगी वाला रेलगाड़ी में मात्र चार को सामान्य बोगी होता है !जैसे ही रेलगाड़ी आता है प्लेटफार्म पर वैसे ही बैग वा को फेंक देते हैं रेलगाड़ी के बोगी मैं! खचाखच भीड़ में पायदान पकड़कर पैर जमाने का कोशिश करते हैं, जैसे ही शरीर बोगी के अंदर जाता है तो एक सुकून का एहसास होता है ! अरे अब तो संभालिए साहेब ,कब तक चंद्र मिनटों का एहसास करते रहेंगे !अरे जो काम दिल्ली कोलकाता मुंबई गुजरात में हो सकता है बिहार में काहे नहीं अरे अब तो संभालिए साहेब , अरे अब तो संभालिए साहेब ! लेखक सत्य प्रकाश वर्मा रोटी बिहार का लेखक सत्य प्रकाश वर्मा #Art